कल पूर्णिमा की रात थी ,
मेरे मन का चाँद पूरा खिला था,
रोशन हो रहा था चेहरा उनका ,
दमकते चाँद की तरह ,
नूर फेला था दूर तक ,
वो तो दोनों तन मन से ,
उनके नूर से सराबोर था,
ज़माने का क्या कहना ,
वो तो चाँद में दाग बताता है,
पर समझते ये बात नहीं की ,
ये तो नज़र दूर करने का टीका है,
ये रात यही पर ठहर जाये ,
और खामोश बेठे रहकर भी,
दिल से दिल की बात होती रहे।
Dil se Dil kee baat

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